बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का इस्तीफा और उसके बाद सेना का नियंत्रण भारतीय दृष्टिकोण के लिए कई संभावित खतरों और चुनौतियों को प्रस्तुत करता है। यहाँ कुछ प्रमुख क्षेत्र हैं जहाँ इस राजनीतिक उथल-पुथल का भारत पर प्रभाव पड़ सकता है:
- सीमा पर बढ़ता तनाव: बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता सीमा पर तनाव बढ़ा सकती है, जिससे सीमा-पार संघर्ष और तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों की संभावना बढ़ सकती है।
- शरणार्थी संकट: यदि बांग्लादेश में स्थिति और बिगड़ती है, तो भारत को पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा जैसे सीमा-संबंधी राज्यों में शरणार्थियों की आमद का सामना करना पड़ सकता है। इससे स्थानीय संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा और मानवीय चुनौतियाँ उत्पन्न होंगी।
- आतंकवादी गतिविधियाँ: राजनीतिक उथल-पुथल शक्ति के शून्य को जन्म दे सकती है, जिससे उग्रवादी समूहों को पैर जमाने का मौका मिल सकता है। भारत को पहले भी बांग्लादेश से संचालित समूहों से खतरे का सामना करना पड़ा है, और नई अस्थिरता से ऐसे मुद्दे फिर से उभर सकते हैं।
- पूर्वोत्तर भारत पर प्रभाव: भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र, जो बांग्लादेश के साथ लंबी सीमा साझा करता है, हिंसा और विद्रोह के प्रभाव से अस्थिर हो सकता है।
- व्यापार में व्यवधान: भारत और बांग्लादेश के बीच महत्वपूर्ण द्विपक्षीय व्यापार होता है। राजनीतिक अस्थिरता व्यापार मार्गों को बाधित कर सकती है, आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकती है और दोनों पक्षों के व्यवसायों को नुकसान पहुँचा सकती है।
- निवेश संबंधी चिंताएँ: बांग्लादेश में भारतीय निवेश, विशेष रूप से कपड़ा, बिजली और बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में, अस्थिर राजनीतिक माहौल के कारण जोखिम का सामना कर सकते हैं।
- विदेश नीति में परिवर्तन: बांग्लादेश में अंतरिम सरकार या कोई नया नेतृत्व अपनी विदेश नीति को पुन: संरेखित कर सकता है, जिससे क्षेत्रीय शक्तियों जैसे चीन की ओर झुकाव हो सकता है। इससे भारत के प्रभाव और क्षेत्रीय हितों पर असर पड़ सकता है।
- एक प्रमुख सहयोगी की हानि: शेख हसीना की सरकार क्षेत्रीय सुरक्षा, आर्थिक सहयोग और आतंकवाद विरोधी प्रयासों के मामले में भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सहयोगी रही है। उनका प्रस्थान इस सामरिक साझेदारी को बनाए रखने में अनिश्चितता पैदा कर सकता है।
- अल्पसंख्यकों पर प्रभाव: राजनीतिक अस्थिरता बांग्लादेश में तनाव बढ़ा सकती है, जिससे अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से हिंदुओं के खिलाफ लक्षित हिंसा हो सकती है, जो भारत में सांप्रदायिक तनाव को जन्म दे सकती है।
- क्षेत्रीय सहयोग: बांग्लादेश में अस्थिरता सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ) और बिम्सटेक (बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल) के तहत क्षेत्रीय सहयोग पहलों को बाधित कर सकती है।
- तीस्ता नदी विवाद: राजनीतिक अस्थिरता तीस्ता नदी जल बंटवारे के समझौते जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत में देरी या जटिलता उत्पन्न कर सकती है, जिससे पश्चिम बंगाल राज्य में कृषि और पेयजल की जरूरतों पर असर पड़ सकता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: किसी भी पर्यावरणीय नीतियों या परियोजनाओं, जिनमें भारत और बांग्लादेश द्वारा साझा किए गए सुंदरबन मैंग्रोव क्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं, का राजनीतिक शून्य के कारण स्थगन या कुप्रबंधन हो सकता है।
भारत को बांग्लादेश की स्थिति पर करीबी नजर रखनी चाहिए और अपने हितों की सुरक्षा के लिए सक्रिय कूटनीति में संलग्न होना चाहिए। सीमा सुरक्षा को मजबूत करना, संभावित मानवीय प्रतिक्रियाओं के लिए तैयार रहना और बांग्लादेश में सभी राजनीतिक दलों के साथ खुले चैनलों को बनाए रखना महत्वपूर्ण होगा। इसके अतिरिक्त, भारत को यह सुनिश्चित करने के लिए अन्य क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियों के साथ काम करना चाहिए कि बांग्लादेश स्थिर और लोकतांत्रिक बना रहे, जिससे उग्रवादी समूहों का उदय न हो और दक्षिण एशिया में एक संतुलित भू-राजनीतिक परिदृश्य बनाए रखा जा सके।
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