डोनाल्ड ट्रम्प पनामा नहर को वापस ले सकते हैं?
डोनाल्ड जे. ट्रम्प द्वारा पनामा नहर को वापस लेने के दावे से एक ऐतिहासिक, भू-राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण में कई महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न होते हैं। इस कथन को समझने के लिए पनामा नहर का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, संधियाँ, और इसके संभावित प्रभावों का अध्ययन आवश्यक है।
पनामा नहर का निर्माण और इसके नियंत्रण का इतिहास अमेरिका और लैटिन अमेरिका के संबंधों का एक महत्वपूर्ण अध्याय है:
- निर्माण और अमेरिकी नियंत्रण:
- 19वीं शताब्दी के अंत में फ्रांस ने पनामा नहर बनाने का प्रयास किया, लेकिन असफल रहा। इसके बाद अमेरिका ने इसे बनाने का बीड़ा उठाया।
- 1903 में है-ब्यूनौ-वरिल्ला संधि (Hay-Bunau-Varilla Treaty) के तहत अमेरिका को पनामा नहर ज़ोन पर पूर्ण अधिकार मिला। इस संधि के दौरान पनामा एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभर रहा था और अमेरिका ने इसे समर्थन दिया।
- पनामा की संप्रभुता की मांग:
- अमेरिकी नियंत्रण के कारण पनामा में असंतोष बढ़ता गया। स्थानीय लोग इसे अपनी संप्रभुता के खिलाफ मानते थे।
- 1977 में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर और पनामा के नेता ओमर टॉरिजोस ने टॉरिजोस-कार्टर संधि (Torrijos-Carter Treaties) पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत पनामा नहर का नियंत्रण धीरे-धीरे पनामा को सौंपा गया और 31 दिसंबर 1999 को नहर का पूर्ण नियंत्रण पनामा को मिल गया।
- वर्तमान स्थिति:
- नहर का प्रबंधन पनामा सरकार द्वारा संचालित पनामा नहर प्राधिकरण (Panama Canal Authority – ACP) द्वारा किया जाता है। पनामा ने नहर को सफलतापूर्वक संचालित किया और इसके विस्तार से वैश्विक व्यापार में इसकी भूमिका बढ़ी है।
ट्रम्प द्वारा पनामा नहर को वापस लेने का दावा करना अंतरराष्ट्रीय कानून और संधियों को चुनौती देने जैसा होगा। यह संभवतः निम्नलिखित तरीकों से हो सकता है:
- कूटनीतिक दबाव:
- अमेरिका पनामा पर आर्थिक और राजनीतिक दबाव डाल सकता है, यह दावा करते हुए कि नहर का नियंत्रण वैश्विक सुरक्षा या व्यापार के लिए अमेरिका के पास होना चाहिए।
- आर्थिक साधन:
- अमेरिका पनामा को वित्तीय प्रोत्साहन या प्रतिबंधों के माध्यम से नहर सौंपने के लिए मजबूर कर सकता है।
- सैन्य हस्तक्षेप:
- यह विकल्प बहुत जोखिमपूर्ण है और वैश्विक स्तर पर अमेरिका की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि, पनामा जैसे छोटे देश के खिलाफ ऐसा कदम उठाना अंतरराष्ट्रीय निंदा को आमंत्रित करेगा।
फायदे:
सामरिक नियंत्रण:
- अमेरिका के पास नहर पर नियंत्रण होने से वह वैश्विक व्यापार मार्गों पर प्रभुत्व बनाए रख सकता है, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए।
- आर्थिक लाभ:
- नहर से प्राप्त होने वाली टोल आय अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती है।
- भू-राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन:
- यह कदम अमेरिका की शक्ति और प्रभुत्व को पुनर्स्थापित करने के रूप में देखा जा सकता है।
नुकसान:
- संधियों का उल्लंघन:
- टॉरिजोस-कार्टर संधि का उल्लंघन करना अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अमेरिका की विश्वसनीयता को कम करेगा।
- वैश्विक निंदा:
- इसे नव-औपनिवेशिकता (neocolonialism) के रूप में देखा जाएगा, जिससे अमेरिका की छवि को नुकसान होगा और कई देशों के साथ संबंध बिगड़ सकते हैं।
- लैटिन अमेरिका में अस्थिरता:
- इस कदम से लैटिन अमेरिका में अमेरिका के खिलाफ विरोध बढ़ सकता है और चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी देश इसका फायदा उठा सकते हैं।
- व्यापार और सैन्य सहयोग पर प्रभाव:
- अमेरिका के सहयोगी देश, विशेष रूप से यूरोप और एशिया में, इसे विश्वासघात के रूप में देख सकते हैं, जिससे सैन्य और व्यापारिक गठबंधनों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- पनामा नहर को वापस लेने का प्रयास ऐतिहासिक संधियों, पनामा की संप्रभुता, और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन का मुद्दा बनेगा। यद्यपि इससे अमेरिका को सामरिक और आर्थिक लाभ हो सकते हैं, इसके अंतरराष्ट्रीय नतीजे गंभीर होंगे। यह कदम न केवल अमेरिका की वैश्विक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में अन्य देशों को भी संधियों को तोड़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।