श्वेत क्रांति (White Revolution) भारत में दुग्ध उत्पादन में हुई एक क्रांति थी, जिसने देश को विश्व के सबसे बड़े दुग्ध उत्पादक देशों में शामिल कर दिया। इसे ‘ऑपरेशन फ्लड’ (Operation Flood) के नाम से भी जाना जाता है और इसके प्रमुख सूत्रधार डॉ. वर्गीज कुरियन थे, जिन्हें “भारत के मिल्कमैन” के नाम से जाना जाता है। श्वेत क्रांति का मुख्य उद्देश्य दुग्ध उत्पादन को बढ़ाना, ग्रामीण दुग्ध उत्पादकों की आय में वृद्धि करना और भारत में दूध की आपूर्ति में स्थिरता लाना था।

भारत में 1960 के दशक में दूध का उत्पादन बहुत कम था और दुग्ध उत्पादक क्षेत्रों की सीमित पहुंच के कारण कई लोग दूध और दूध से बने उत्पादों से वंचित थे। इस स्थिति को सुधारने के लिए राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड (NDDB) की स्थापना की गई, और 1970 में ऑपरेशन फ्लड कार्यक्रम की शुरुआत हुई, जो श्वेत क्रांति का आधार बना।

2.1. ऑपरेशन फ्लड (Operation Flood):

ऑपरेशन फ्लड भारत में दुग्ध उत्पादन और वितरण का सबसे बड़ा प्रयास था। यह तीन चरणों में पूरा किया गया:

  • पहला चरण (1970-1980): इस चरण में दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों का गठन किया गया और प्रमुख शहरों में दुग्ध आपूर्ति सुनिश्चित की गई।
  • दूसरा चरण (1981-1985): दुग्ध उत्पादन को और बढ़ावा दिया गया और सहकारी समितियों का विस्तार किया गया।
  • तीसरा चरण (1985-1996): इस चरण में दुग्ध सहकारी समितियों को पूरी तरह से स्वावलंबी बनाने पर जोर दिया गया।

2.2. दुग्ध सहकारी समितियाँ (Milk Cooperatives):

श्वेत क्रांति के अंतर्गत लाखों छोटे दुग्ध उत्पादकों को सहकारी समितियों के माध्यम से संगठित किया गया। इन सहकारी समितियों ने दुग्ध संग्रह, प्रसंस्करण, और विपणन का काम किया, जिससे दुग्ध उत्पादकों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सका।

2.3. डेयरी विकास (Dairy Development):

डेयरी फार्मिंग को तकनीकी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विकसित किया गया। आधुनिक डेयरी तकनीकों, जैसे कृत्रिम गर्भाधान, पोषण, और स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा दिया गया।

2.4. राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड (National Milk Grid):

देश के प्रमुख दुग्ध उत्पादक क्षेत्रों को उपभोक्ता बाजारों से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय दुग्ध ग्रिड की स्थापना की गई, जिसके माध्यम से दूध और दुग्ध उत्पादों की निर्बाध आपूर्ति संभव हो पाई।

3.1. दुग्ध उत्पादन में वृद्धि (Increase in Milk Production):

श्वेत क्रांति के परिणामस्वरूप भारत में दुग्ध उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। भारत ने 1998 में अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बनने का गौरव प्राप्त किया।

3.2. कृषक आय में वृद्धि (Increase in Farmer Income):

दुग्ध उत्पादन के माध्यम से ग्रामीण किसानों, विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों की आय में वृद्धि हुई, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ।

3.3. पोषण स्तर में सुधार (Improvement in Nutritional Standards):

दूध और दुग्ध उत्पादों की उपलब्धता बढ़ने से देश में पोषण स्तर में सुधार हुआ। खासकर बच्चों और महिलाओं के लिए यह क्रांति बेहद फायदेमंद रही।

3.4. सहकारी आंदोलन को प्रोत्साहन (Promotion of Cooperative Movement):

श्वेत क्रांति के माध्यम से सहकारी आंदोलन को नया जीवन मिला। अमूल (AMUL) जैसी सफल सहकारी संस्थाओं ने इसे आगे बढ़ाया और विश्व स्तर पर एक मिसाल कायम की।

3.5. महिला सशक्तिकरण (Women Empowerment):

दुग्ध सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी ने उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बनाया और उनके सामाजिक स्तर में भी सुधार हुआ।

4.1. गुणवत्ता नियंत्रण (Quality Control):

बढ़ते दुग्ध उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती थी। असंगठित क्षेत्र में मिलावट की समस्या गंभीर रही।

4.2. इन्फ्रास्ट्रक्चर का अभाव (Lack of Infrastructure):

दूध के संग्रहण और परिवहन के लिए कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की कमी के कारण उत्पादन क्षेत्रों से शहरों तक दूध की आपूर्ति में समस्या आई।

4.3. पर्यावरणीय प्रभाव (Environmental Impact):

बड़े पैमाने पर डेयरी फार्मिंग के कारण पर्यावरणीय समस्याएं, जैसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, जल और मृदा प्रदूषण, बढ़ीं।

5.1. भारत की खाद्य सुरक्षा (India’s Food Security):

श्वेत क्रांति ने देश को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की। भारत अब न केवल अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है, बल्कि दूध और दुग्ध उत्पादों का निर्यात भी करता है।

5.2. ग्रामीण विकास (Rural Development):

दुग्ध सहकारी समितियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों का समग्र विकास हुआ। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से परे आय के नए साधन मिले।

5.3. वैश्विक मान्यता (Global Recognition):

अमूल जैसे ब्रांडों ने भारत को वैश्विक डेयरी उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। इसके अलावा, डॉ. वर्गीज कुरियन को भी उनकी असाधारण सेवाओं के लिए अनेक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया।

श्वेत क्रांति ने भारतीय दुग्ध उद्योग को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई और करोड़ों किसानों के जीवन में बदलाव लाया। इस क्रांति ने दुग्ध उत्पादन को एक संगठित और समावेशी व्यवसाय बना दिया, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक सामाजिक और आर्थिक बदलाव आए। हालांकि, दुग्ध उत्पादन की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए भविष्य में तकनीकी सुधार, गुणवत्ता नियंत्रण, और पर्यावरणीय प्रबंधन पर अधिक जोर देने की आवश्यकता है।

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