इंग्लैंड में ग्रूमिंग गैंग्स का मुद्दा एक गंभीर और विवादास्पद विषय बन चुका है। इन गैंग्स के अपराधों ने समाज और प्रशासन की विफलताओं को उजागर किया है। ग्रूमिंग गैंग्स संगठित समूह होते हैं, जो कमजोर व्यक्तियों, विशेष रूप से नाबालिगों, को यौन शोषण के लिए निशाना बनाते हैं। यह समस्या न केवल इंग्लैंड में बल्कि पूरी दुनिया में चिंता का विषय बन गई है। ग्रूमिंग गैंग्स क्या हैं?(What Are Grooming Gangs?) ग्रूमिंग गैंग्स आमतौर पर शिकार को अपने जाल में फंसाने के लिए विश्वास और भावनात्मक संबंधों का उपयोग करते हैं। वे पीड़ितों को दोस्ती, प्रेम, या भौतिक लाभ का लालच देकर फंसाते हैं। एक बार जाल में फंसने के बाद, पीड़ित शारीरिक और मानसिक शोषण का सामना करते हैं। हाल के वर्षों में, कई हाई-प्रोफाइल मामलों में ब्रिटिश पाकिस्तानी पुरुष शामिल पाए गए हैं। रोथरहैम, रोचडेल और टेलफोर्ड जैसे शहरों में सामने आए मामलों ने यह दिखाया कि दशकों तक सैकड़ों लड़कियों का शोषण होता रहा और कानून प्रवर्तन व सामाजिक सेवाएं इस पर समय रहते कार्रवाई करने में विफल रहीं। पाकिस्तान का संबंध इन मामलों में ब्रिटिश पाकिस्तानी पुरुषों की भागीदारी ने सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं पर बहस छेड़ दी है। आलोचकों का मानना है कि पितृसत्तात्मक मानसिकता और ब्रिटिश समाज में कुछ समूहों के सीमित एकीकरण ने इन अपराधों में योगदान दिया हो सकता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अधिकांश ब्रिटिश पाकिस्तानी नागरिक कानून का पालन करने वाले और सम्मानित नागरिक हैं। कुछ सांस्कृतिक प्रथाएं, जैसे कि महिलाओं की “इज्जत” से संबंधित धारणाएं और सीमित समुदायों के भीतर जवाबदेही की कमी, अपराधियों को बढ़ावा दे सकती हैं। ग्रूमिंग गैंग्स कैसे काम करते हैं? ग्रूमिंग गैंग्स अपनी गतिविधियों के लिए समाज की कमजोरियों और संस्थागत विफलताओं का लाभ उठाते हैं। उनकी कार्यप्रणाली में शामिल हैं: कमजोर पीड़ितों को निशाना बनाना: टूटे परिवारों, अनाथालयों, या उपेक्षित बच्चों को मुख्य रूप से निशाना बनाया जाता है। भावनात्मक रूप से फंसाना: अपराधी पीड़ितों का भरोसा जीतकर उन्हें उनके परिवार और दोस्तों से अलग करते हैं। संगठित शोषण: पीड़ितों का शोषण सुनियोजित तरीके से किया जाता है, जिसमें कई अपराधी शामिल होते हैं। संस्थागत विफलताओं का फायदा उठाना: कई मामलों में, पुलिस और सामाजिक सेवाओं ने शिकायतों को नजरअंदाज कर दिया, अक्सर नस्लवाद के आरोपों के डर से। हाउस ऑफ कॉमन्स ने जांच को क्यों खारिज किया? ग्रूमिंग गैंग्स पर राष्ट्रीय स्तर की जांच की मांग लंबे समय से की जा रही है, लेकिन हाउस ऑफ कॉमन्स ने इसे खारिज कर दिया। इसके पीछे कई कारण बताए गए: संसाधनों की कमी: सरकार का मानना है कि रोथरहैम जैसे मामलों पर पहले से चल रही जांच पर्याप्त है। विभाजन का डर: कुछ राजनेताओं को लगता है कि जांच जातीय या धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण बढ़ा सकती है। राजनीतिक संवेदनशीलता: नस्ल और प्रवासन से जुड़े मुद्दे अत्यधिक संवेदनशील हैं, और जांच से चरमपंथी विचारधाराओं को बल मिल सकता है। इस फैसले की कड़ी आलोचना हुई है। कई लोग सरकार पर आरोप लगाते हैं कि वह राजनीतिक शुचिता को न्याय से ऊपर रख रही है। दुनिया भर में चिंता का कारण ग्रूमिंग गैंग्स के मामलों ने वैश्विक स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है। इसके पीछे कुछ मुख्य कारण हैं: मानव अधिकारों का उल्लंघन: ये अपराध मानव गरिमा और सुरक्षा के गंभीर उल्लंघन का प्रतीक हैं। संस्थागत विफलता: ब्रिटेन जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रशासन और न्याय व्यवस्था की विफलता ने लोगों को चिंतित किया है। सांस्कृतिक तनाव: कुछ विशेष समुदायों की भागीदारी ने बहुसंस्कृतिवाद और समाज में एकीकरण पर बहस छेड़ दी है। प्रवासन नीतियों का वैश्विक प्रभाव: यह मुद्दा दिखाता है कि प्रवासन और सामाजिक सामंजस्य के बीच संतुलन बनाना कितना चुनौतीपूर्ण है। निष्कर्ष इंग्लैंड में ग्रूमिंग गैंग्स के मामलों ने कानून प्रवर्तन, बाल सुरक्षा और सामाजिक दृष्टिकोण में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया है। हालांकि कुछ लोगों के कृत्यों के कारण पूरे समुदाय को कलंकित नहीं करना चाहिए, लेकिन उन सांस्कृतिक और प्रणालीगत मुद्दों का सामना करना भी आवश्यक है, जो ऐसे अपराधों को बढ़ावा देते हैं। वैश्विक स्तर पर, ये मामले इस बात की याद दिलाते हैं कि कमजोर वर्गों की सुरक्षा और न्याय की सुनिश्चितता के लिए समर्पण आवश्यक है। देशों को इन मामलों से सीख लेकर ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए, जो सुरक्षा, समानता और जवाबदेही को प्राथमिकता देता हो। Click below to read more
मानव मेटापन्यूमोवायरस (HMPV)
मानव मेटापन्यूमोवायरस (HMPV) एक श्वसन रोगजनक है जिसे पहली बार 2001 में पहचाना गया था। यह वायरस मुख्य रूप से बच्चों, बुजुर्गों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों को प्रभावित करता है। हालांकि यह वायरस 2001 में खोजा गया था, लेकिन अध्ययन बताते हैं कि यह दशकों से मनुष्यों में मौजूद था। यह पैरामिक्सोविरिडी (Paramyxoviridae) परिवार से संबंधित है और श्वसन सिंकाइटियल वायरस (RSV) के समान है।
“जंगल सभ्यताओं से पहले आते हैं और रेगिस्तान उनके बाद आते हैं”
“जंगल सभ्यताओं से पहले आते हैं और रेगिस्तान उनके बाद आते हैं” यह वाक्य मानव सभ्यता और पर्यावरण के बीच के संबंध को गहराई से समझाता है। यह कथन इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि मानव समाज अक्सर प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता के बीच उभरता है, लेकिन जब संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया जाता है, तो यह धरती को बंजर और उर्वरहीन बना देता है। यह विचार न केवल पर्यावरणीय परिणामों की बात करता है बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि किस प्रकार असंतुलित विकास मानव सभ्यता के लिए घातक हो सकता है।
BPSC मुख्य परीक्षा के लिए व्यापक रणनीति
बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की मुख्य परीक्षा प्रीलिम्स से अलग होती है और इसमें गहराई से विषयों का अध्ययन और उत्तर लेखन क्षमता की आवश्यकता होती है। इस परीक्षा की तैयारी के लिए एक सुसंगठित रणनीति अपनाना आवश्यक है। नीचे एक व्यापक रणनीति दी गई है:
“भविष्य के साम्राज्य मस्तिष्क के साम्राज्य होंगे”
“भविष्य के साम्राज्य मस्तिष्क के साम्राज्य होंगे” यह कथन न केवल वर्तमान यथार्थ को परिलक्षित करता है, बल्कि यह एक दिशा-सूचक भी है। यह हमें यह समझने का अवसर देता है कि मानवता का वास्तविक विकास केवल भौतिक संसाधनों से नहीं, बल्कि ज्ञान, रचनात्मकता, और नैतिकता के आधार पर संभव है। यदि हम मस्तिष्क के साम्राज्य की अवधारणा को आत्मसात कर सकें और इसे न्याय, समानता, और मानव कल्याण के लिए उपयोग कर सकें, तो हम एक बेहतर और स्थायी भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
प्रश्न पूछने वाला ही विज्ञान का सच्चा सिपाही हैI
विज्ञान एक ऐसी विधा है, जो सत्य की खोज और ज्ञान के विस्तार के लिए निरंतर प्रयास करती है। यह प्रकृति के रहस्यों को समझने और उसके नियमों को उजागर करने का प्रयास करता है। लेकिन इस यात्रा में, विज्ञान किसी निश्चितता या अंधविश्वास पर आधारित नहीं होता, बल्कि संदेह, सवाल और जिज्ञासा पर निर्भर करता है। “प्रश्न पूछने वाला ही विज्ञान का सच्चा सिपाही है” यह कथन इस तथ्य को रेखांकित करता है कि विज्ञान की प्रगति के लिए संदेह, प्रश्न और जांच अत्यंत आवश्यक हैं।
सभी बड़े परिणाम देने वाले विचार हमेशा सरल होते हैंI
सभी बड़े परिणाम देने वाले विचार हमेशा सरल होते हैं। मानव इतिहास का प्रत्येक युग विचारों और आविष्कारों का साक्षी रहा है, जिन्होंने समाज की दिशा और दशा को प्रभावित किया है। परंतु, यह देखा गया है कि जो विचार बड़े परिणाम देते हैं, वे अक्सर सरल होते हैं। यह विषय विचारशीलता, गहराई और सरलता की शक्ति का प्रतीक है। ऐसा नहीं है कि इन विचारों को विकसित करना आसान होता है, बल्कि उनकी सरलता उन्हें सार्वभौमिक रूप से प्रभावी बनाती है। इस निबंध में, हम इस विषय को ऐतिहासिक, सामाजिक, और व्यावहारिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करेंगे। सरलता का महत्व सरलता का तात्पर्य किसी विचार, प्रक्रिया या समाधान को इस प्रकार प्रस्तुत करना है कि वह जटिलता से मुक्त हो और व्यापक समाज के लिए आसानी से समझने योग्य हो। सरल विचारों का प्रभाव इस बात में निहित होता है कि वे बड़े स्तर पर लोगों को प्रेरित कर सकते हैं, समाज में बदलाव ला सकते हैं, और दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ सकते हैं। ऐतिहासिक दृष्टिकोण 1. महात्मा गांधी और अहिंसा का विचारमहात्मा गांधी का अहिंसा और सत्य का सिद्धांत एक सरल विचार था, लेकिन इसका प्रभाव इतना व्यापक था कि इसने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी। सत्याग्रह का मूल आधार यह था कि हिंसा से अधिक शक्तिशाली सत्य और नैतिकता होती है। इस विचार की सरलता ने हर वर्ग, हर जाति, और हर आयु के लोगों को एकजुट किया। 2. आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांतअल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत (E=mc²) ने भौतिकी की दुनिया में क्रांति ला दी। यह समीकरण अपनी संरचना में अत्यंत सरल है, लेकिन इसके परिणामों ने ब्रह्मांड की समझ को बदल दिया। यह दिखाता है कि बड़े परिणाम देने वाले विचारों की सरलता ही उनकी शक्ति है। सामाजिक दृष्टिकोण 1. शिक्षा और साक्षरता के सरल विचारसार्वभौमिक शिक्षा का विचार सरल है: प्रत्येक बच्चे को शिक्षित करने का अधिकार है। लेकिन इस विचार के लागू होने से समाज के हर पहलू में बदलाव आया है। यह विचार समाज को आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से सशक्त बनाता है। 2. स्वच्छता और स्वास्थ्य अभियानस्वच्छता के महत्व को लेकर “स्वच्छ भारत अभियान” का विचार भी सरल है: स्वच्छता से रोगों का नाश होता है और स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। इस सरल विचार ने जन जागरूकता बढ़ाई और समाज में स्वच्छता की संस्कृति को प्रोत्साहित किया। विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में सरलता 1. शून्य का आविष्कारभारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट द्वारा शून्य का आविष्कार एक अत्यंत सरल लेकिन क्रांतिकारी विचार था। इसने गणित को नए आयाम दिए और आधुनिक तकनीक, विज्ञान और इंजीनियरिंग की नींव रखी। 2. इंटरनेट का उपयोगइंटरनेट की मूल अवधारणा – “जानकारी का साझाकरण” – बेहद सरल थी। आज यह विचार दुनिया को जोड़ने वाला सबसे शक्तिशाली उपकरण बन चुका है। सरलता और नेतृत्व 1. सरलता से प्रभावी संवादमहान नेता अक्सर अपने विचारों को सरल और प्रभावी रूप से प्रस्तुत करते हैं। अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग जूनियर, और स्वामी विवेकानंद जैसे नेताओं ने अपने विचारों को इतनी सरलता से व्यक्त किया कि वे आम जनमानस के दिलों को छू गए। 2. जनांदोलन की शक्तिनेताओं द्वारा दिए गए सरल विचार, जैसे “हम होंगे कामयाब” या “जय जवान, जय किसान,” ने जनांदोलनों को नई दिशा दी और लोगों को प्रेरित किया। जटिलता बनाम सरलता यह कहना गलत होगा कि जटिल विचार प्रभावशाली नहीं हो सकते। जटिल विचार अक्सर बौद्धिक और तकनीकी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण होते हैं। लेकिन सरल विचार ही अधिक व्यापक और सार्वभौमिक होते हैं। सरलता का तात्पर्य किसी जटिल विचार को इतनी सहजता से प्रस्तुत करना है कि वह हर किसी की समझ में आ जाए। चुनौतियां और सीमाएं सरलता को अपनाना जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही इसे गलत ढंग से प्रस्तुत करना खतरनाक हो सकता है। कभी-कभी विचारों की अत्यधिक सरलता उनके वास्तविक उद्देश्य को नुकसान पहुंचा सकती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी वैज्ञानिक सिद्धांत को बहुत सरल रूप में प्रस्तुत किया जाए, तो वह गलतफहमी पैदा कर सकता है। निष्कर्ष “सभी बड़े परिणाम देने वाले विचार हमेशा सरल होते हैं” विषय का तात्पर्य यह नहीं है कि जटिलता अनावश्यक है, बल्कि यह है कि सरलता वह माध्यम है जिसके द्वारा जटिल विचारों को प्रभावी ढंग से व्यक्त किया जा सकता है। इतिहास, समाज, विज्ञान, और नेतृत्व में सरल विचारों की शक्ति को बार-बार साबित किया गया है। महात्मा गांधी के सत्याग्रह से लेकर इंटरनेट की अवधारणा तक, हर बड़े बदलाव के पीछे एक सरल लेकिन गहन विचार छिपा हुआ है। इसलिए, सरलता को केवल एक गुण के रूप में नहीं, बल्कि एक सिद्धांत के रूप में अपनाना चाहिए। क्योंकि अंततः, वही विचार जो सभी के लिए समझने योग्य और लागू करने योग्य होते हैं, वे ही समाज में सबसे बड़े और सकारात्मक परिणाम लाते हैं।
व्यक्ति के चरित्र का परीक्षण करने के लिए, उसे शक्ति प्रदान करके देखिए !
अब्राहम लिंकन का यह प्रसिद्ध कथन, “लगभग सभी पुरुष प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर सकते हैं, लेकिन किसी व्यक्ति के चरित्र का परीक्षण करने के लिए, उसे शक्ति प्रदान करके देखिए,” मानव स्वभाव की गहरी समझ को दर्शाता है। यह कथन इस बात को उजागर करता है कि अधिकतर लोग कठिनाइयों और संघर्षों का सामना कर सकते हैं, परंतु जब उन्हें शक्ति मिलती है, तब उनके चरित्र की असली परीक्षा होती है। शक्ति का प्रभाव और उसका दुरुपयोग समाज और राजनीति में गहराई से देखा जाता है, और यही उस व्यक्ति के नैतिक मूल्य और नेतृत्व की क्षमता का सच्चा प्रतिबिंब प्रस्तुत करता है।
सोशल मीडिया युवाओं में ‘छूटने का डर’ पैदा कर रहा हैI
आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गया है। विशेषकर युवाओं के बीच, यह न केवल एक संवाद का माध्यम है, बल्कि उनकी पहचान और सामाजिक स्थिति का भी महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है। हालांकि, सोशल मीडिया के असीम लाभ हैं, लेकिन इसके कई नकारात्मक प्रभाव भी हैं। “छूटने का डर” (Fear of Missing Out, FOMO) सोशल मीडिया के अत्यधिक उपयोग का एक प्रमुख दुष्परिणाम है, जो युवाओं में अवसाद और अकेलेपन की भावना को बढ़ावा दे रहा है। इस निबंध में हम सोशल मीडिया के इस पहलू का विश्लेषण करेंगे, और जानेंगे कि कैसे यह युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है।
गलत होने की कीमत कुछ न करने की कीमत से कम हैI
गलत होने की कीमत, कुछ न करने की कीमत से कम हैI “गलत होने की कीमत कुछ न करने की कीमत से कम है” यह वाक्य उस महत्वपूर्ण विचार को व्यक्त करता है कि निष्क्रियता, या किसी कार्य को न करना, किसी गलती से भी अधिक हानिकारक हो सकता है। यह कथन जीवन के सभी क्षेत्रों में लागू होता है, चाहे वह व्यक्तिगत निर्णय हो, व्यवसाय या नेतृत्व से जुड़े फैसले हों, या फिर शासन और समाज से जुड़े मुद्दे हों। गलतियाँ अक्सर सीखने और सुधार का मार्ग होती हैं, जबकि कुछ न करना अक्सर स्थिरता, अवसरों के ह्रास और समस्याओं की वृद्धि की ओर ले जाता है। इस निबंध में हम इस विचार के विभिन्न पहलुओं, इसके ऐतिहासिक और समकालीन उदाहरणों और इसके समाज, राजनीति और व्यक्तिगत जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार करेंगे। जोखिम और अनिश्चितता की प्रकृति जीवन अनिश्चितताओं से भरा हुआ है, और हर निर्णय कुछ न कुछ जोखिम लेकर आता है। चाहे वह व्यक्ति का व्यक्तिगत निर्णय हो या किसी बड़े संगठन या सरकार का सामूहिक निर्णय, गलतियों की संभावना हमेशा रहती है। फिर भी, जोखिम लेने से बचना और निर्णय न लेना अक्सर उससे भी अधिक खतरनाक साबित होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी समस्या का समाधान नहीं खोजने से वह समस्या और गंभीर हो जाती है। सरकारों के मामले में, उदाहरण के लिए, अगर वे आर्थिक सुधारों या पर्यावरणीय नीतियों पर कोई ठोस निर्णय लेने में देरी करती हैं, तो इसका परिणाम दीर्घकालिक हानि के रूप में सामने आ सकता है। आर्थिक ठहराव, बढ़ती असमानता और पर्यावरणीय क्षरण जैसी समस्याएं अक्सर इसी निर्णयहीनता का परिणाम होती हैं। दूसरी ओर, एक गलत निर्णय भी आगे चलकर सही दिशा में सुधार का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। ऐतिहासिक उदाहरण: निष्क्रियता बनाम गलत कार्रवाई इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जो यह स्पष्ट करते हैं कि निष्क्रियता की कीमत गलत निर्णय की कीमत से कहीं अधिक होती है। 1. महामंदी और न्यू डील 1930 के दशक की महामंदी के दौरान, अमेरिका को एक अप्रत्याशित आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। प्रारंभ में राष्ट्रपति हूवर की सरकार ने कोई साहसिक कदम उठाने से परहेज किया, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि अर्थव्यवस्था स्वतः ही ठीक हो जाएगी। इस निष्क्रियता के कारण संकट और गहराता चला गया, और बेरोजगारी और गरीबी ने व्यापक रूप ले लिया। इसके विपरीत, जब फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट ने राष्ट्रपति का पदभार संभाला, तो उन्होंने न्यू डील नामक कई आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू किए। हालांकि सभी कार्यक्रम सफल नहीं रहे, लेकिन रूज़वेल्ट की कार्रवाई ने आर्थिक स्थिरता बहाल की और जनता के बीच आत्मविश्वास पैदा किया। अगर वह कुछ न करते, तो आर्थिक संकट और अधिक गंभीर हो जाता और जनता को इससे कहीं अधिक हानि उठानी पड़ती। 2. जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय निष्क्रियता जलवायु परिवर्तन की समस्या एक और उदाहरण है, जहां निष्क्रियता की कीमत अत्यधिक है। दशकों से वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और इससे प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ रहा है। इसके बावजूद, कई देशों की सरकारें पर्याप्त कदम उठाने में असफल रही हैं। इसका परिणाम यह है कि आज जलवायु संकट हमारे सामने खड़ा है, और इसका सामना करने में देरी से ही स्थिति और बदतर होती जा रही है। उन देशों ने, जिन्होंने समय रहते नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश किया और पर्यावरणीय नियमों को लागू किया, इस समस्या के समाधान में काफी प्रगति की है। जबकि सभी उपाय पूरी तरह सफल नहीं हुए, उनका प्रयास निष्क्रियता से कहीं बेहतर साबित हुआ है। जलवायु परिवर्तन पर जल्द कदम न उठाने का परिणाम भविष्य में अकल्पनीय प्राकृतिक आपदाओं और मानव जीवन पर व्यापक प्रभाव के रूप में सामने आ सकता है। असफलता और प्रगति में संबंध इस कथन का एक मुख्य पहलू यह है कि असफलता प्रगति की दिशा में एक आवश्यक कदम है। चाहे विज्ञान, प्रौद्योगिकी या व्यवसाय की बात हो, इतिहास में कई महान आविष्कार असफलताओं और गलतियों से सीखने के बाद ही संभव हुए हैं। असफलता का मूल्य आमतौर पर सीखे गए सबक से कम होता है, जो अंततः सफलता की ओर ले जाता है। 1. थॉमस एडिसन और बल्ब का आविष्कार थॉमस एडिसन द्वारा बल्ब का आविष्कार एक प्रसिद्ध उदाहरण है, जहां असफलता और प्रयास से सफलता मिली। एडिसन ने बल्ब के लिए सही सामग्री खोजने में हजारों असफल प्रयास किए। जब उनसे उनकी असफलताओं के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “मैंने असफलता नहीं पाई है। मैंने 10,000 तरीके सीखे हैं जो काम नहीं करते।” उनकी इस सोच ने उन्हें अंततः सफलता दिलाई और दुनिया को बिजली का प्रकाश मिला। एडिसन की कहानी इस तथ्य को स्पष्ट करती है कि गलत होने के डर से कोई भी कार्य न करना प्रगति में सबसे बड़ी बाधा है। उनकी गलतियों से मिले सबक ने उन्हें एक महान आविष्कारक बनाया और दुनिया को एक अनमोल तोहफा दिया। 2. व्यवसाय की दुनिया: स्टार्टअप्स और नवाचार व्यवसाय की दुनिया में, विशेषकर स्टार्टअप्स के मामले में, असफलता को सफलता की दिशा में एक सामान्य कदम के रूप में देखा जाता है। कई उद्यमी शुरुआत में असफल होते हैं, लेकिन हर असफलता से उन्हें मूल्यवान सीख मिलती है, जो उन्हें भविष्य के प्रयासों में सफलता दिलाती है। गलत होने की कीमत — जैसे आर्थिक नुकसान या प्रतिष्ठा पर आघात — अक्सर कुछ न करने की कीमत से कम होती है। प्रौद्योगिकी कंपनियां जैसे गूगल, अमेज़न और स्पेसएक्स नवाचार के उदाहरण हैं। इन कंपनियों ने अपने प्रयोगों में असफलताओं को सहन किया और उससे सीखा, जिससे उन्होंने उद्योगों में क्रांति ला दी। अगर वे निष्क्रिय होतीं, तो शायद दुनिया को उनके द्वारा लाए गए नवाचारों का लाभ कभी न मिलता। राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में निष्क्रियता का ख़तरा राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में भी यह विचार लागू होता है। जब अन्याय और असमानता जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो निष्क्रियता केवल समस्याओं को और गंभीर बनाती है। 1. नागरिक अधिकार आंदोलन अमेरिका के 1950 और 1960 के दशक के नागरिक अधिकार आंदोलन का उदाहरण इस बात का प्रमाण है कि अन्याय का सामना करने के लिए कार्रवाई आवश्यक है। दशकों से अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिकों ने